दीवाली 5 दिनों तक मनाया जानें वाला त्योहार है जो धनतेरस पर शुरू से होता है और भैया दूज पर आकर खत्म होता है। लेकिन इसी बीच नरक चतुर्दशी के अपने महत्व और मायने हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है।
वही इस बार लोग 14 नवंबर को दिवाली होने की वजह से धनतेरस और नरक चतुर्दशी की तिथि को लेकर लोगों में दुविधा हैं जिसमें पांच दिवसीय त्योहार के दौरान नरक चतुर्दशी का दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार ज्यादातर लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन को छोटी दीपावली, रूप चतुर्दशी और रूप चौदस के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानते हैं कि इस बार नरक चतुर्दशी की पूजा तिथि, समय और महत्व।
ड्रिपपंचांग के अनुसार इस साल नरक चतुर्दशी शनिवार 14 नवंबर को मनाई जाएगी। वहीं ऐसा माना जाता है कि इस दिन मृत्युलोक के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यम देवता के लिए इस दिन दीप दान और औषधि स्नान करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। इस साल अभ्यंग स्नान का मुहूर्त प्रातः 05:23 से प्रातः 06:43 तक है(अवधि: 01 घंटा 20 मिनट)
चतुर्दशी तिथि 13 नवंबर, 2020 को शाम 05:59 बजे से शुरू होगी
चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर, 2020 को दोपहर 02:17 बजे समाप्त होगी
नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। किंवदंती के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने 16,000 लड़कियों को बंधक बना रखा था। जिसका वध करके भगवान कृष्ण ने उसे हराकर उन सभी लड़कियों को बचाया। लड़कियों को शर्मिंदगी का डर था और सामाजिक रूप से घृणा की जा रही थी। इसलिए उन्होंने कृष्ण से मदद मांगी। उसके बाद उनकी समस्या को समझते हुए कृष्ण और उनकी पत्नी ने तब निर्णय लिया कि वे सभी 16,000 लड़कियों से शादी करेंगे और दुनिया उन्हें कृष्ण की पत्नियों के रूप में जानेगी। ऐसी कई पौराणिक कहानियाँ हैं जो छोटी दिवाली के उत्सव से जुड़ी हैं।