अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है और राष्ट्रपति अशरफ गनी भी देश छोड़कर जा चुके हैं. देश छोड़ने के बाद उन्होंने कहा कि अगर मैं देश नहीं छोड़ता तो और खून-खराबा होता और राजधानी काबुल पूरी तरह बर्बाद हो जाती. दिन भर तालिबान और अफगानिस्तान की खबरें देखने, पढ़ने और सुनने के बाद आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि आखिर यह तालिबान है क्या?
तालिबान शब्द का अर्थ
सबसे पहले हम आपको बता दें कि "तालिबान" शब्द का क्या अर्थ है. तालिबान एक पश्तो भाषा है. पश्तो भाषा में छात्रों को तालिबान कहा जाता है. तालिबान का मतलब पश्तून में 'छात्र' होता है, एक तरह से यह उनकी शुरुआत (मदरसों) को दर्शाता है. तालिबान का जन्म एक मदरसे में हुआ था जिसने उत्तरी पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम के कट्टरपंथी रूप की शिक्षा दी थी. 1990 के दशक की शुरुआत में तालिबान मजबूत हुआ, जिसके कारण सोवियत गृह युद्ध हुआ. शुरू में लोग उसे बाकी मुजाहिदीन से ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि तालिबान ने वादा किया था कि वे भ्रष्टाचार और अराजकता को खत्म कर देंगे लेकिन तालिबान के हिंसक रवैये और इस्लामी कानून के तहत क्रूर सजा ने लोगों में दहशत पैदा कर दी. संगीत, टीवी और सिनेमा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. पुरुषों को दाढ़ी रखना अनिवार्य था, महिलाएं सिर से पैर तक खुद को ढके बिना बाहर नहीं जा सकती थीं. तालिबान ने 1995 में हेरात और 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया. 1998 तक, लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था.
तालिबान का उदय कैसे हुआ
1980 के दशक में, जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में सैनिकों की शुरुआत की, तो यह अमेरिका ही था जिसने मुजाहिदीन को हथियार और प्रशिक्षण प्रदान करके लड़ने के लिए उकसाया. नतीजतन, सोवियत संघ ने हार मान ली, लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन, तालिबान का जन्म हुआ. कहा जाता है कि तालाबानी ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ग्रहण की. हालांकि, पाकिस्तान का कहना है कि तालिबान के उदय में उसकी कोई भूमिका नहीं है.
क्यों डरी हुई है अफगानी जनता?
तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया गया है. वहीं राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया और विदेशी नागरिकों सहित अफगान नागरिकों ने देश छोड़ने की होड़ तेज कर दी. देश में तालिबान के राज्याभिषेक की तैयारी भी शुरू हो गई है. तालिबान ने घोषणा की है कि अफगानिस्तान का नया नाम 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' होगा. अमेरिकी बलों की वापसी के बाद, यह निश्चित था कि जल्द या बाद में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया जाएगा, लेकिन किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि तालिबान इतनी जल्दी देश पर कब्जा कर लेगा, खुद तालिबान को इसकी उम्मीद भी नहीं थी. तालिबान की ओर से संभावित राष्ट्रपति अब्दुल गनी ने कहा कि सभी लोगों की जान-माल की रक्षा की जाएगी. अगले कुछ दिनों में सब कुछ नियंत्रण में हो जाएगा. वहीं दूसरी तरफ तालिबान का लोगों में इतना खौफ है कि उन्होंने टीवी, लैपटॉप और किताबें तक छिपा रखी हैं. दूसरी ओर, ऐसी भी खबरें हैं कि काबुल की दीवारों से महिलाओं के चित्रों को हटाया या साफ किया जा रहा है. लोगों को इस बात का भी डर सता रहा है कि देश में एक बार फिर इस्लामिक कानून के तहत सजा का दौर शुरू हो जाएगा. महिलाओं को बुर्का पहनाया जाएगा, उनकी शिक्षा पर रोक लगाई जाएगी. ऐसी और भी कई बातें हैं, जिनका खौफ लोगों के मन में बैठा है.
क्या है तालिबान का मकसद
अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी उसका खात्मा नहीं हो सका. तालिबान के मकसद की बात करें तो उसका सिर्फ एक ही मकसद अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है.