Delhi Ordinance issue: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए दिल्ली अध्यादेश के मामले को अब सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ के पास भेज सकता है. फिलहाल कोर्ट ने इस मामले को 20 जुलाई तक के लिए टाल दिया है. बता दें कि मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सर्विसेज को दिल्ली सरकार के नियंत्रण से बाहर करने वाले अध्यादेश को संविधान पीठ को सौंपना चाहते हैं.
संविधान पीठ द्वारा होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि पहली बार केंद्र ने दिल्ली सरकार के दायरे से बाहर सेवाओं को लेने के लिए अनुच्छेद 239AA के खंड 7 के तहत प्रदत्त शक्ति का उपयोग किया है. एक तरह से संविधान में संशोधन किया गया है और हमें देखना होगा कि क्या यह स्वीकार्य है? कोर्ट ने कहा कि हम अध्यादेश की चुनौती पर संविधान पीठ द्वारा सुनवाई करेंगे.
AAP के वकील ने स्थगन का अनुरोध किया
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ के मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजने के संकेत के बाद दिल्ली की आप सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने स्थगन का अनुरोध किया.
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल और एलजी को दी सलाह
सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राज्यपाल वीके सक्सेना को सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है कि 'झगड़ा बंद करो, राजनीति से ऊपर उठो. संवैधानिक पदाधिकारियों को एक साथ बैठकर मुद्दे सुलझाने होंगे.' सॉलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार से अध्यादेश पर निर्णय लेने के लिए मानसून सत्र के अंत तक इंतजार करने को कहा.
क्या होती है संविधान पीठ?
बता दें कि संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ होती है जिसमें पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं. इन पीठों का गठन नियमित तौर पर नहीं किया जाता है. अनुच्छेद 145(3) में प्रावधान है कि "इस संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होगी”.